Bajirao Peshwa History Hindi
आज के इस लेख में आप पेशवा बाजीराव का इतिहास जानेंगे Bajirao Peshwa History Hindi
पेशवा बाजीराव Peshwa Bajirao जिन्हें बाजीराव प्रथम (Bajirao I) भी कहा जाता है मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। पेशवा का अर्थ होता है प्रधानमंत्री। वे मराठा छत्रपति राजा शाहू के 4थे प्रधानमंत्री थे।
Peshwa Bajirao ने अपना प्रधानमंत्री का पद सन 1720 से अपनी मृत्यु तक संभाला। उनको बाजीराव बल्लाल और थोरल बाजीराव के नाम से भी जाना जाता है।
बाजीराव का सबसे मुख्य योगदान रहा उत्तर में मराठा साम्राज्य को बढाने में और यह माना जाता है अपनी सेना के कार्यकाल में उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा।
इतिहास के अनुसार बाजीराव घुड़सवार करते हुए लड़ने में सबसे माहिर थे और यह माना जाता है उनसे अच्छा घुड़सवार सैनिक भारत में आज तक देखा नहीं गया।
पेशवा बाजीराव का इतिहास Bajirao Peshwa History Hindi
बाजीराव का एक छोटा भाई भी था चिमाजी अप्पा। बाजीराव अपने पिताजी के साथ हमेशा सैन्य अभियानों में जाया करते थे।
सन 1720 में उनके पिता विश्वनाथ की मृत्यु हो गयी। उसके बाद बाजीराव को 20 साल की आयु में पेशवा के पद पर नियोजित किया गया। बाजीराव ने “हिन्दू पद पादशाही” का प्रचार एक आदर्श बन कर किया।
बाजीराव का इरादा था मराठा ध्वज को दिल्ली के दीवारों में लहराते हुए देखना और मुग़ल साम्राज्य को हटा कर एक हिन्दू पद पादशाही का निर्माण करना।
पेशवा के पद में बाजीराव का कार्य Bajirao Life in Peshwa Career
बाजीराव के पेशवा पद पर आते ही छत्रपति शाहू नाम मात्र के ही शासक बन गए और खासकर सतारा स्थित उनके आवास तक ही सीमित रह गए। मराठा साम्राज्य कुंके नाम पर तो चल रहा था पर असली ताकत पेशवा बाजीराव के हाँथ में था।
बाजीराव के पद पर आने के बाद मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह ने मराठों को शिवाजी की मृत्य के बाद प्रदेशों के अधीनता को याद दिलाया। सन 1719 में मुग़लों ने यह भी याद दिलाया की डेक्कन के 6 प्रान्तों से कर वसूलने का मराठों का अधिकार क्या है।
पेशवा पद पर कुछ कड़ी मुश्किलों का सामना Bajirao faced some problems during Peshwa Pad
बाजीराव ने बहुत ही छोटी उम्र में पेशवा पद ग्रहण किया था जिसकी वजह से उन्हें कई प्रकार के मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। जैसे –
छोटी उम्र में पेशवा बनने के कारण कुछ वरिष्ट अधिकारीयों जैसे नारों राम मंत्री, अनंत राम सुमंत और श्रीपतराव प्रतिनिधि के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो गयी थी।
निज़ाम-उल-मुल्क असफ जह प्रथम, मुग़ल साम्राज्य का वाइसराय था। उसने डेक्कन में नया राज्य निर्माण किया और मराठों को कर वसूली के अधिकार के लिए चुनौती दिया।
बहुत जल्द मराठों ने मालवा और गुजरात में भी प्रदेशों को प्राप्त किया।
मराठा साम्राज्य के कुछ राज्यों में पेशवा का नियंत्रण नहीं था जैसे की जंजीर का किला।
निज़ाम-उल-मुल्क असफ जह प्रथम के खिलाफ अभियान
पेशवा बाजीराव 4 जनवरी, 1721 में निज़ाम-उल-मुल्क असफ जह प्रथम से मिले और अपने विवादों को एक समझौते के तौर पर सुलझाया। पर तब भी निज़ाम नहीं माना और मराठों के अधिकार के खिलाफ डेक्कन से कर वसूलने लगा।
सन 1722 में निज़ाम को मुग़ल शासन का वजीर बना दिया गया। परन्तु सन 1723 में सम्राट मुहम्मद शाह ने निज़ाम को डेक्कन से अवध भेज दिया।
निज़ाम ने वजीर का पद छोड़ दिया और वो दोबारा डेक्कन चला गया। सन 1725 में निज़ाम ने मराठा कर अधिकारीयों को खदेड़ने का प्रयास किया और वह इस प्रयास में सफल हुआ।
27 अगस्त सन 1727 में बाजीराव ने निज़ाम के खिलाफ मोर्चा शुरू किया। पेशवा बाजीराव ने निज़ाम के कई राज्यों में कब्ज़ा कर लिया जैसे जलना, बुरहानपुर, और खानदेश।
मालवा का अभियान
बाजीराव ने सन 1723 में दक्षिण मालवा की और एक अभियान शुरू किया। जिसमें मराठा के प्रमुख रानोजी शिंदे, मल्हार राव होलकर, उदाजी राव पवार, तुकोजी राव पवार, और जीवाजी राव पवार ने सफलतापूर्वक चौथ इक्कठा किया।
बुंदेलखंड का अभियान
बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल ने मुग़लों के खिलाफ विद्रोह छेद दिया था। जिसके कारण दिसम्बर 1728 में मुग़लों ने मुहम्मद खान बंगश के नेतृत्व में बुंदेलखंड पर आक्रमण कर दिया और महाराजा के परिवार के लोगों को बंधक बना दिया।
छत्रसाल राजा के बार-बार बाजीराव से मदद माँगने पर मार्च, सन 1729 को को पेशवा बाजीराव ने उत्तर दिया और अपनी ताकत से महाराजा छत्रसाल को उनका सम्मान वापस दिलाया। महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव को बहुत बड़ा जागीर सौंपा और अपनी बेटी मस्तानी और बाजीराव का विवाह भी करवाया।
साथ ही महाराजा छत्रसाल ने अपनी मृत्यु सन 1731 के पहले अपने कुछ मुख्य राज्य भी मरातो को सौंप दिया था।
1 अप्रैल 1731 में बाजीराव ने दाभाडे, गैक्वाड और कदम बन्दे की सेनाओं को हरा दिया और दभोई के युद्ध में त्रिम्बक राव की मृत्यु हो गयी।
27 दिसम्बर 1732 में निज़ाम की मुलाकात पेशवा बाजीराव से रोहे-रमेशराम में हुई परन्तु निज़ाम ने कसम खाया की वो मराठों के अभियानों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
सन 1733 में सिद्दी प्रमुख, रसूल याकुत खान की मृत्यु के बाद उसके बेटों के बिच युद्ध सा छिड़ गया। उनके एक पुत्र अब्दुल रहमान ने बाजीराव पेशवा से मदद माँगा जिसके कारण बाजीराव ने कान्होजी अंगरे के पुत्र सेखोजी अंगरे के नेतृत्व में एक सेना मदद के लिए भेजा।
मराठों ने कोंकण और जंजीरा के कई जगहों पर काबू पा लिया और 1733 में ही उन्होंने रायगड के किले को भी कब्ज़ा कर लिया।
19 अप्रैल 1736 में चिमनाजी ने अचानक से सिद्दीयों पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण लगभग 1500 से ज्यादा सिद्दियों की मृत्यु हो गयी।
सआदत खान ने 1.5 लाख के सेना के साथ उन पर आक्रमण कर उन्हें हरा दिया। परन्तु 28 मार्च 1737 को मराठों ने दिल्ली की लड़ाई (Battle of Delhi)में हर दिया मुग़लों को।
भोपाल की लड़ाई (Battle of Bhopal) में भी दिसम्बर 1737 को मराठों ने मुगलों को हरा दिया।
मार्च 1737 में पेशवा बाजीराव ने अपनी एक सेना चिमनजी के नेतृत्व में भेजा और थाना किला और बेस्सिन पर कब्ज़ा कर लिया वसई की युद्ध के बाद।
पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नी का नाम था मस्तानी, जो छत्रसाल के राजा की बेटी थी। बाजीराव उनसे बहुत अधिक प्रेम करते थे और उनके लिए पुणे के पास एक महल भी बाजीराव ने बनवाया जिसका नाम उन्होंने मस्तानी महल रखा।
सन 1734 में बाजीराव और मस्तानी का एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णा राव रखा गया था।
कहा जाता है बाजीराव पेशवा की मृत्यु 28 अप्रैल 1740 को, 39 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। उस समय वो इंदौर के पास खर्गोन शहर में रुके थे।
बाजीराव पेशवा कौन थे ? Who was Peshwa Bajirao in Hindi?
पेशवा बाजीराव Peshwa Bajirao जिन्हें बाजीराव प्रथम (Bajirao I) भी कहा जाता है मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। पेशवा का अर्थ होता है प्रधानमंत्री। वे मराठा छत्रपति राजा शाहू के 4थे प्रधानमंत्री थे।
Peshwa Bajirao ने अपना प्रधानमंत्री का पद सन 1720 से अपनी मृत्यु तक संभाला। उनको बाजीराव बल्लाल और थोरल बाजीराव के नाम से भी जाना जाता है।
बाजीराव का सबसे मुख्य योगदान रहा उत्तर में मराठा साम्राज्य को बढाने में और यह माना जाता है अपनी सेना के कार्यकाल में उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा।
इतिहास के अनुसार बाजीराव घुड़सवार करते हुए लड़ने में सबसे माहिर थे और यह माना जाता है उनसे अच्छा घुड़सवार सैनिक भारत में आज तक देखा नहीं गया।
पेशवा बाजीराव का इतिहास Bajirao Peshwa History Hindi
प्राम्भिक जीवन Bajirao Peshwa Early Life
पेशवा बाजीराव का जन्म 18 अगस्त सन 1700 को एक भट्ट परिवार में पिता बालाजी विश्वनाथ और माता राधा बाई के घर में हुआ था। उनके पिताजी छत्रपति शाहू के प्रथम पेशवा थे।बाजीराव का एक छोटा भाई भी था चिमाजी अप्पा। बाजीराव अपने पिताजी के साथ हमेशा सैन्य अभियानों में जाया करते थे।
सन 1720 में उनके पिता विश्वनाथ की मृत्यु हो गयी। उसके बाद बाजीराव को 20 साल की आयु में पेशवा के पद पर नियोजित किया गया। बाजीराव ने “हिन्दू पद पादशाही” का प्रचार एक आदर्श बन कर किया।
बाजीराव का इरादा था मराठा ध्वज को दिल्ली के दीवारों में लहराते हुए देखना और मुग़ल साम्राज्य को हटा कर एक हिन्दू पद पादशाही का निर्माण करना।
पेशवा के पद में बाजीराव का कार्य Bajirao Life in Peshwa Career
बाजीराव के पेशवा पद पर आते ही छत्रपति शाहू नाम मात्र के ही शासक बन गए और खासकर सतारा स्थित उनके आवास तक ही सीमित रह गए। मराठा साम्राज्य कुंके नाम पर तो चल रहा था पर असली ताकत पेशवा बाजीराव के हाँथ में था।
बाजीराव के पद पर आने के बाद मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह ने मराठों को शिवाजी की मृत्य के बाद प्रदेशों के अधीनता को याद दिलाया। सन 1719 में मुग़लों ने यह भी याद दिलाया की डेक्कन के 6 प्रान्तों से कर वसूलने का मराठों का अधिकार क्या है।
पेशवा पद पर कुछ कड़ी मुश्किलों का सामना Bajirao faced some problems during Peshwa Pad
बाजीराव ने बहुत ही छोटी उम्र में पेशवा पद ग्रहण किया था जिसकी वजह से उन्हें कई प्रकार के मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। जैसे –
छोटी उम्र में पेशवा बनने के कारण कुछ वरिष्ट अधिकारीयों जैसे नारों राम मंत्री, अनंत राम सुमंत और श्रीपतराव प्रतिनिधि के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो गयी थी।
निज़ाम-उल-मुल्क असफ जह प्रथम, मुग़ल साम्राज्य का वाइसराय था। उसने डेक्कन में नया राज्य निर्माण किया और मराठों को कर वसूली के अधिकार के लिए चुनौती दिया।
बहुत जल्द मराठों ने मालवा और गुजरात में भी प्रदेशों को प्राप्त किया।
मराठा साम्राज्य के कुछ राज्यों में पेशवा का नियंत्रण नहीं था जैसे की जंजीर का किला।
निज़ाम-उल-मुल्क असफ जह प्रथम के खिलाफ अभियान
पेशवा बाजीराव 4 जनवरी, 1721 में निज़ाम-उल-मुल्क असफ जह प्रथम से मिले और अपने विवादों को एक समझौते के तौर पर सुलझाया। पर तब भी निज़ाम नहीं माना और मराठों के अधिकार के खिलाफ डेक्कन से कर वसूलने लगा।
सन 1722 में निज़ाम को मुग़ल शासन का वजीर बना दिया गया। परन्तु सन 1723 में सम्राट मुहम्मद शाह ने निज़ाम को डेक्कन से अवध भेज दिया।
निज़ाम ने वजीर का पद छोड़ दिया और वो दोबारा डेक्कन चला गया। सन 1725 में निज़ाम ने मराठा कर अधिकारीयों को खदेड़ने का प्रयास किया और वह इस प्रयास में सफल हुआ।
27 अगस्त सन 1727 में बाजीराव ने निज़ाम के खिलाफ मोर्चा शुरू किया। पेशवा बाजीराव ने निज़ाम के कई राज्यों में कब्ज़ा कर लिया जैसे जलना, बुरहानपुर, और खानदेश।
पल्खेद की लड़ाई Battle of Palkhed
28 फरवरी, 1728 में बाजीराव और निज़ाम की सेना के बिच एक युद्ध हुआ जिसे ‘पल्खेद की लड़ाई’ कहां जाता है। इस लड़ाई में निज़ाम की हार हुई उस पर मजबूरन शांति बनाये रखने के लिए दवाब डाला गया। उसके बाद से वह सुधर गया।मालवा का अभियान
बाजीराव ने सन 1723 में दक्षिण मालवा की और एक अभियान शुरू किया। जिसमें मराठा के प्रमुख रानोजी शिंदे, मल्हार राव होलकर, उदाजी राव पवार, तुकोजी राव पवार, और जीवाजी राव पवार ने सफलतापूर्वक चौथ इक्कठा किया।
अमझेरा का युद्ध Battle of Amjhera
अक्टूबर 1728 में बाजीराव ने एक विशाल सेना अपने छोटे भाई चिमनाजी अप्पा के नेतृत्व में भेजा जिसके कुछ प्रमुख थे शिंदे, होलकर और पवार। 29 नवम्बर 1728 को चिमनाजी की सेना ने मुग़लों को अमझेरा में हरा दिया।बुंदेलखंड का अभियान
बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल ने मुग़लों के खिलाफ विद्रोह छेद दिया था। जिसके कारण दिसम्बर 1728 में मुग़लों ने मुहम्मद खान बंगश के नेतृत्व में बुंदेलखंड पर आक्रमण कर दिया और महाराजा के परिवार के लोगों को बंधक बना दिया।
छत्रसाल राजा के बार-बार बाजीराव से मदद माँगने पर मार्च, सन 1729 को को पेशवा बाजीराव ने उत्तर दिया और अपनी ताकत से महाराजा छत्रसाल को उनका सम्मान वापस दिलाया। महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव को बहुत बड़ा जागीर सौंपा और अपनी बेटी मस्तानी और बाजीराव का विवाह भी करवाया।
साथ ही महाराजा छत्रसाल ने अपनी मृत्यु सन 1731 के पहले अपने कुछ मुख्य राज्य भी मरातो को सौंप दिया था।
गुजरात का अभियान
सन 1730 में पेशवा बाजीराव ने अपने छोटे भाई चिमनाजी अप्पा को गुजरात भेजा। मुघर साशन के गवर्नर सर्बुलंद खान ने गुजरात का कर इक्कठा (चौथ और सरदेशमुखी) को मराठों को सौंप दिया।1 अप्रैल 1731 में बाजीराव ने दाभाडे, गैक्वाड और कदम बन्दे की सेनाओं को हरा दिया और दभोई के युद्ध में त्रिम्बक राव की मृत्यु हो गयी।
27 दिसम्बर 1732 में निज़ाम की मुलाकात पेशवा बाजीराव से रोहे-रमेशराम में हुई परन्तु निज़ाम ने कसम खाया की वो मराठों के अभियानों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
सिद्दियों के खिलाफ अभियान
जंजीरा के सिद्दी एक छोटा राज्य पश्चिमी तटीय भाग और जंजीर का किला संभालते थे पर शिवाजी की मृत्यु के बाद से वो धीरे-धीरे मध्य और उत्तर कोंकण पर भी राज करने लगे।सन 1733 में सिद्दी प्रमुख, रसूल याकुत खान की मृत्यु के बाद उसके बेटों के बिच युद्ध सा छिड़ गया। उनके एक पुत्र अब्दुल रहमान ने बाजीराव पेशवा से मदद माँगा जिसके कारण बाजीराव ने कान्होजी अंगरे के पुत्र सेखोजी अंगरे के नेतृत्व में एक सेना मदद के लिए भेजा।
मराठों ने कोंकण और जंजीरा के कई जगहों पर काबू पा लिया और 1733 में ही उन्होंने रायगड के किले को भी कब्ज़ा कर लिया।
19 अप्रैल 1736 में चिमनाजी ने अचानक से सिद्दीयों पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण लगभग 1500 से ज्यादा सिद्दियों की मृत्यु हो गयी।
दिल्ली की और अभियान
12 मार्च 1736 में बाजीराव पेशवा ने पुणे से दिल्ली की और कुच किया जिसके फल स्वरूप मुग़ल शहनशा ने सआदत खान को उनकी कुच को रोकने को कहा।सआदत खान ने 1.5 लाख के सेना के साथ उन पर आक्रमण कर उन्हें हरा दिया। परन्तु 28 मार्च 1737 को मराठों ने दिल्ली की लड़ाई (Battle of Delhi)में हर दिया मुग़लों को।
भोपाल की लड़ाई (Battle of Bhopal) में भी दिसम्बर 1737 को मराठों ने मुगलों को हरा दिया।
पुर्तगाली के खिलाफ अभियान
पुर्तगालियों ने कई पश्चिमी तटों पर कब्ज़ा कर लिया था। साल्सेट द्वीप पर उन्होंने अवैद तरीके से एक फैक्ट्री बना दिया था हिन्दुओं के जाती के खिलाफ वे कार्य कर रहे थे।मार्च 1737 में पेशवा बाजीराव ने अपनी एक सेना चिमनजी के नेतृत्व में भेजा और थाना किला और बेस्सिन पर कब्ज़ा कर लिया वसई की युद्ध के बाद।
निजी जीवन Peshwa Bajirao Personal Life in Hindi
पेशवा बाजीराव की पहली पत्नी का नाम काशीबाई था जिसके 3 पुत्र थे – बालाजी बाजी राव, रघुनाथ राव जिसकी बचपन में भी मृत्यु हो गयी थी।पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नी का नाम था मस्तानी, जो छत्रसाल के राजा की बेटी थी। बाजीराव उनसे बहुत अधिक प्रेम करते थे और उनके लिए पुणे के पास एक महल भी बाजीराव ने बनवाया जिसका नाम उन्होंने मस्तानी महल रखा।
सन 1734 में बाजीराव और मस्तानी का एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णा राव रखा गया था।
कहा जाता है बाजीराव पेशवा की मृत्यु 28 अप्रैल 1740 को, 39 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। उस समय वो इंदौर के पास खर्गोन शहर में रुके थे।